।। जय श्री राम ।।
श्री राम: अयोध्या की श्री राम जन्मभूमि के देवतत्त्व का अनावरण
अयोध्या भारत के हृदय में बसने वाला एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है । जिसमें इतिहास, संस्कृति, और आध्यात्मिकता का भरपूर संगम है, जो लाखों दिलों में अपना विशेष स्थान रखता है। आयोध्या की आध्यात्मिक अभिक्षमता के केंद्र में भगवान राम का महान मंदिर है, जो अटूट श्रद्धा और अखंड विश्वास का प्रतीक है। इस वेबसाईट में, हम राम जन्म भूमि अयोध्या के तथ्य, संदर्भ और महत्ता के साथ ही श्री राम मंदिर के हाल के उद्घाटन और हिन्दू विश्वास में इसकी महत्ता को जानने का प्रयास करेंगे ।
अयोध्या की श्री राम जन्म भूमि: ऐतिहासिक रहस्य
अयोध्या का इतिहास हिंदू धर्म के सबसे प्रतिष्ठित देवताओं में से एक, भगवान राम की कहानियों से जुड़ा है । यह भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान राम का जन्मस्थान माना जाता है। ‘अयोध्या’ नाम का अर्थ है ‘अचूक’ या ‘अजेय’ । जो इस प्राचीन शहर में प्रतिध्वनित होने वाली आध्यात्मिक शक्ति को दर्शाता है.
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तथ्य और संदर्भ
प्राचीन ग्रंथों और धर्मग्रंथों में कई संदर्भ अयोध्या की पवित्रता की पुष्टि करते हैं. ऋषि वाल्मिकी द्वारा लिखित महाकाव्य, रामायण, भगवान राम के जीवन और यात्रा का वर्णन करता है. यह पवित्र ग्रंथ अयोध्या की ऐतिहासिकता को भगवान राम के जन्मस्थान के रूप में स्थापित करने में एक आधारशिला के रूप में कार्य करता है.
अयोध्या में पुरातात्विक निष्कर्षों ने एक भव्य मंदिर के अवशेषों का पता लगाया है जो एक समय अपना अस्तित्व रखते थे । ये निष्कर्ष इस विश्वास को और मजबूत करते हैं कि अयोध्या वास्तव में भगवान राम की जन्मस्थली है ।
स्मारक राम मंदिर अयोध्या उद्घाटन
लंबे समय से चले आ रहे कानूनी और भावनात्मक संघर्ष के बाद, अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन 2020 में हुआ । इस मंदिर की भव्यता आगंतुकों को जागृत करती है । वास्तु शास्त्र और जटिल नगर वास्तुकला के सिद्धांतों पर निर्मित, मंदिर लाखों लोगों के समर्पण और भक्ति का उदाहरण देता है।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किए गए भूमि पूजन समारोह ने भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण को चिह्नित किया है। मंदिर केवल पूजा का स्थान नहीं है, बल्कि एकता और विश्वास का प्रतीक है, जो लाखों, करोड़ों लोगों को जीवन के सभी क्षेत्रों से एक साथ लाता है ।
हिंदू विश्वास का महत्व
राम मंदिर अयोध्या हिंदू विश्वास में बहुत महत्व रखते हैं। यह अधर्म पर धर्म (धार्मिकता) की जीत का प्रतीक है और एक पुण्य जीवन जीने के लिए प्रेरणा का स्रोत है। देवता, भगवान राम से आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर में आते हैं, यह मानते हुए कि उनकी आराधना का सुपरिणाम उन्हे अवश्य मिलेगा ।
विश्व की खुशी और वसुधैव कुटुंबकम
राम मंदिर का उद्घाटन भारत के लिए सिर्फ एक महत्वपूर्ण अवसर नहीं था, बल्कि यह दुनिया भर में उत्सव का कारण था । अपनापन और खुशी इतनी कि इस घटना ने देश विदेश की सीमाओं को पार कर भारत के ऐतिहासिक मंत्र वसुधैव कुटुंबकम से पूरी दुनिया को एक सूत्र में पिरो दिया । इससे पता चला कि विश्वास और संस्कृति, मानवीय अंतराल को पाट सकते हैं और दुनिया में खुशी ला सकते हैं ।
संक्षेप में, राम जन्म भूमि अयोध्या, भगवान राम की जन्म स्थली अटूट श्रद्धा, ऐतिहासिक महत्व और आध्यात्मिक समृद्धि का प्रतीक है। राम मंदिर आयोध्या का उद्घाटन एक ऐसा पल है जो इतिहास के पन्नों में अंकित होगा, जो एकता, विश्वास, और धर्म की खोज के प्रयास का प्रतीक है। हम इस भव्य मंदिर के उद्घाटन का उत्सव मनाते हैं, जो दुनिया के हर कोने के लोगों को खुशी देने का भी एक कारण है।
सुनि सिसु रुदन परम प्रिय बानी। संभ्रम चलि आईं सब रानी
हरषित जहँ तहँ धाईं दासी। आनँद मगन सकल पुरबासी॥
दसरथ पुत्रजन्म सुनि काना। मानहु ब्रह्मानंद समाना॥
परम प्रेम मन पुलक सरीरा। चाहत उठन करत मति धीरा॥
जाकर नाम सुनत सुभ होई। मोरें गृह आवा प्रभु सोई॥
परमानंद पूरि मन राजा। कहा बोलाइ बजावहु बाजा॥
गुर बसिष्ठ कहँ गयउ हँकारा। आए द्विजन सहित नृपद्वारा॥
अनुपम बालक देखेन्हि जाई। रूप रासि गुन कहि न सिराई॥
ध्वज पताक तोरन पुर छावा। कहि न जाइ जेहि भाँति बनावा॥
सुमनबृष्टि अकास तें होई। ब्रह्मानंद मगन सब लोई॥
बृंद बृंद मिलि चलीं लोगाईं। सहज सिंगार किएँ उठि धाईं॥
कनक कलस मंगल भरि थारा। गावत पैठहिं भूप दुआरा॥
करि आरति नेवछावरि करहीं। बार बार सिसु चरनन्हि परहीं॥
मागध सूत बंदिगन गायक। पावन गुन गावहिं रघुनायक॥
कैकयसुता सुमित्रा दोऊ। सुंदर सुत जनमत भैं ओऊ॥
वह सुख संपति समय समाजा। कहि न सकइ सारद अहिराजा॥
अवधपुरी सोहइ एहि भाँती। प्रभुहि मिलन आई जनु राती॥
देखि भानु जनु मन सकुचानी। तदपि बनी संध्या अनुमानी॥
सुंदर श्रवन सुचारु कपोला। अति प्रिय मधुर तोतरे बोला॥
चिक्कन कच कुंचित गभुआरे। बहु प्रकार रचि मातु सँवारे॥
कौसल्या जब बोलन जाई। ठुमुकु ठुमुकु प्रभु चलहिं पराई॥
निगम नेति सिव अंत न पावा। ताहि धरै जननी हठि धावा॥
धूसर धूरि भरें तनु आए। भूपति बिहसि गोद बैठाए॥
दो० – भोजन करत चपल चित इत उत अवसरु पाइ।
भाजि चले किलकत मुख दधि ओदन लपटाइ॥
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मैं विनम्रता पूर्वक क्षमाप्रार्थी हूँ यदि मेरे इस प्रयास में कोई त्रुटि हो । श्री राम के परम भक्त वीर हनुमान से क्षमाप्रार्थी हूँ यदि मैं श्री राम के सम्मान मे यदि कोई गलती करता हूँ । यदि मुझसे श्री राम के सम्मान में कोई अपराध हो जाए तो कृपया एक निरीह, अज्ञानी समझकर क्षमा करना ।
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