Ram Mandir Bhoomipujan और Article 370 Removal का दिन अर्थात 5 अगस्त (2019 और 2020) विश्व और भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गया। इस दिन सर्वाधिक चर्चित एवं दूरगामी दो विशेष परिवर्तन हुए हैं । भारत के लिए 5 August 2019 और 5 August 2020 का दिन क्यों ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण हो गया है ? इस प्रश्न का उत्तर है –
- 5 अगस्त 2020 को अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण कार्य के लिए भूमिपूजन (Ram Mandir Bhoomipujan) होना।
- 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 की समाप्ति (Article 370 Removal )
5 अगस्त की तिथि वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण
वैश्विक स्तर पर 5 अगस्त को कई विशेष घटनाए हुई थी जिन्हें क्रम से समझते हैं :-
- 5 अगस्त 1921 को अमेरिका और जर्मनी ने बर्लिन शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।
- 5 अगस्त 1945 को अमेरिका ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापान के हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराया था।
- 5 अगस्त 1960 को अफ्रीकी देश बुर्किना फासो ने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की थी ।
- 5 अगस्त 1963 को ही रूस, ब्रिटेन और अमेरिका ने विश्व में परमाणु निरस्तीकरण पर मॉस्को में परमाणु परीक्षण निषेध संधि की थी।
- 5 अगस्त 2019 को भारतीय संसद के द्वारा भारत के संविधान से जम्मू कश्मीर राज्य के लिए लागू धारा 370 का निरसन
जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 का निरसन (Article 370 Removal )
भारत के परिप्रेक्ष्य में Article 370 Removal Date 5 अगस्त वास्तव में ऐतिहासिक, अद्भुत और अविस्मरणीय तिथि बन गई है। ‘जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है’ यह वक्तव्य सभी राजनीतिक दलों के नेता देते जरूर थे, लेकिन सत्य यह था कि जम्मू-कश्मीर अनुच्छेद 370 के कारण बहुत से भारतीय कश्मीरी , मूलभूत नागरिक अधिकारों से वंचित थे ।
यह अनुच्छेद भारत सरकार के किसी भी निर्णय को सीधे तौर पर जम्मू-कश्मीर में लागू होने से रोकता था। इसलिए ‘जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है’ यह महज 5 अगस्त 2019 Article 370 Removal से पहले केवल कहने भर के लिए ही थी। वास्तव में जम्मू-कश्मीर में Article 370 एक जहरीले कांटे की तरह था। जिसके कारण कश्मीर घाटी के चंद परिवार मालामाल हो रहे थे। घाटी में अलगाव की आग धधक रही थी।
घाटी के युवा पत्थरबाज बनकर सेना को सीधे चुनौती देते हुए भारत से अलग होकर पाकिस्तान में शामिल होने के लिए अलगाव के साथ आतंकवादी घटनाओं में संलिप्त भी हुआ करते थे । कश्मीर घाटी के जो नेता अनुच्छेद 370 को अपने लाभ के लिए हमेशा से इस्तेमाल करते थे, उनमें से नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुला कहा करते थे,”धरती पर कोई भी ताकत Article 370 को छू नहीं सकती।” इसी प्रकार जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती कहा करती थी, “Article 370 को यदि छेड़ा तो जम्मू कश्मीर में भारत का तिरंगा उठाने वाला कोई नहीं होगा ।” इन कश्मीर घाटी के पूर्व नेताओं को लद्दाख के सांसद जमयांग सेरिंग नामग्याल ने संसद में यह कहते हुए मुंहतोड़ जवाब दिया था, “इस फैसले से केवल तीन परिवारों की रोज़ी-रोटी बंद होगी।”
इस विषय पर कांग्रेस का कोई स्पष्ट रुख नजर नहीं आया । लेकिन 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने सभी को चौंकाते हुए अनुच्छेद 370 को हटाकर (Article 370 Removal) जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाकर नए युग की शुरुआत की । तब पूरे देशवासियों ने खुशियां मनाते हुए जम्मू कश्मीर को गले लगाया और बाद में 2023 में G20 जैसे विश्वस्तरीय आयोजन कर पूरी दुनिया को जम्मू कश्मीर के खुशहाल होने का साफ संदेश दे दिया ।
Read :- Article 370 in Hindi
Know : the Article 370
अलगाववाद पर शक्तिशाली प्रहार का दिन : 5 अगस्त Article 370 Removal
5 August 2019 “Article 370 Removal Date” का दिन कश्मीर घाटी में बढ़ रहे अलगाववाद पर बहुत शक्तिशाली प्रहार था। इस प्रहार की चोट इतनी गहरी थी कि पाकिस्तान भी बिलबिला रहा था। 5 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर के ‘भारत का अभिन्न अंग’ होने की राह में अनुच्छेद 370 की समाप्ति होना एक ऐतिहासिक दिन था।
Supreme court Approved Article 370 Removal After 4 Years
विदित हो कि 5 अगस्त 2019 को भारतीय संसद ने एक कानून लाकर जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 हटा तो दिया लेकिन कुछ समूहों को यह बात हजम नहीं हुई और उनहोने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी , जिसमे कहा गया कि जम्मू कश्मीर राज्य को धारा 370 से एक विशेष राज्य का दर्ज प्राप्त था, इसे हटाया जाना संविधान के मूल सिद्धांत के विपरीत । सुप्रीम कोर्ट में 4 वर्ष केस चलने के बाद आखिरकार 11 दिसंबर 2023 को सात सदस्यीय संविधान बेंच ने Article 370 को हटाने को वैधानिक मान्यता देते हुए इस निरसन को सही सिद्ध कर दिया ।
Article 370 Removal Judgment Judges
D.Y. Chandrachud CJI, S.K. Kaul J, Sanjiv Khanna J, B.R. Gavai J, Surya Kant J, Gauri Kashyap and R. Sai Spandana
Ayodhya Ram Mandir Bhoomipujan
पिछले 500 वर्षों के इतिहास में 5 अगस्त 2020 के दिन एक और ऐतिहासिक घटना Ram Mandir Bhoomipujan के रूप में घटी। इस शुभ क्षण की प्रतीक्षा में हिन्दू समाज पिछले 491 वर्ष से संघर्ष कर रहा था। 21 मार्च 1528 को मुगल आक्रांता बाबर के आदेश पर उसके सिपहसलार मीर बाकी ने राममंदिर को ध्वस्त किया था और फिर उसके स्थान पर एक बाबरी मस्जिद नुमा ढांचा खड़ा कर दिया था। उस ढांचे को हिन्दू समाज ने 6 दिसंबर 1992 को उखाड़ फेंका था। इसके बाद न्यायलय में प्रकरण चला और हिन्दू समाज की विजय हुई।
विश्व पटल पर अयोध्या मे राम जन्मभूमि स्थल से संबंधित 1528 से लेकर 2020 तक यानी 492 साल के इतिहास में कई मोड़ आए। कुछ मील के पत्थर भी पार किए गए। खास तौर से 9 नवंबर 2019 का दिन जब 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने ऐतिहासिक फैसले को सुनाया। अयोध्या जमीन विवाद मामला देश के सबसे लंबे चलने वाले केस में से एक रहा। आइए आपको बताते हैं कि इस विवाद की नींव कब पड़ी और अब तक के इतिहास के अहम पड़ाव…
Ram Janmbhoomi Dispute पर तिथीवार घटनाएं
- वर्ष 1528-29 – मुग़ल आक्रमणकारी बाबर के सेनापति मीर बाकी ने एक मस्जिद बनवाई, जिसे बाबरी मस्जिद नाम दिया गया । हिंदू धर्म ग्रंथों की मान्यता के अनुसार इसी जगह भगवान राम का जन्म हुआ था और इसी कारण आरोप रहा कि राम मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनाई गई थी । हालांकि कई शोधकर्ताओं का कहना है कि असल विवाद की शुरुआत 18वीं सदी में हुई ।
- वर्ष 1853- इस जगह पर मंदिर-मस्जिद को लेकर पहला विवाद हुआ , जिसमें हिंदुओं ने आरोप लगाया कि मंदिर को तोड़कर मुस्लिमों ने अपना धार्मिक स्थल बनवाया । इस बात को लेकर पहली बार हिंसा के प्रमाण मिलते हैं ।
- वर्ष 1859- तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत ने मध्यस्थता करते हुए विवादित स्थल का दोनों पक्षों में बंटवारा कर दिया और तारों की एक बाड़ खड़ी कर दी ताकि अलग-अलग जगहों पर हिंदू-मस्लिम अपनी-अपनी प्रार्थना कर सकें ।
- वर्ष 1885- मंदिर मस्जिद विवाद ने इतना गंभीर रूप ले लिया कि पहली बार ये अदालत पहुंचा । हिंदू साधु महंत रघुबर दास ने फैजाबाद कोर्ट में बाबरी मस्जिद परिसर में राम मंदिर बनवाने के लिए इजाजत मांगी, हालांकि अदालत ने ये अपील ठुकरा दी. । इसके बाद से मामला गहराता गया ।
- वर्ष 1949- हिंदुओं ने बाबरी मस्जिद परिसर में कथित तौर पर भगवान राम की मूर्ति स्थापित कर दी, तब से भगवान राम के बाल रूप की हिंदू पूजा करने लगे और मुस्लिमों ने मस्जिद में नमाज पढ़नी बंद कर दी ।
- वर्ष 1950- फैजाबाद की जिला अदालत में एक अपील दायर कर गोपाल सिंह विशारद ने भगवान राम की पूजा की इजाजत मांगी, किन्तु उन्हें इजाजत कुछ शर्तों के साथ दी गई
- वर्ष 1950- महंत रामचंद्र दास ने उक्त स्थान में हिंदुओं द्वारा पूजा जारी रखने के लिए याचिका लगाई गई । इसी दौरान मस्जिद को ‘ढांचा’ के रूप में संबोधित किया गया ।
- वर्ष 1959- निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल के उनके स्वामित्व हेतु हस्तांतरण के लिए मुकदमा दायर किया ।
- वर्ष 1961- इस दौरान मुस्लिम पक्ष की ओर से उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद पर मालिकाना हक के लिए मुकदमा कर दिया ।
- वर्ष 1984- विश्व हिंदू परिषद ने व्यापक स्तर पर राम जन्म भूमि का ताला खोलने और इस जगह पर मंदिर बनवाने के लिए अभियान शुरू किया और इसके लिए समिति का गठन हुआ ।
- फरवरी 1986- एक अहम फैसले के तहत स्थानीय कोर्ट ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा की इजाजत दे दी और ताले दोबारा खोले गए । इस समय इससे नाराज मुस्लिमों ने फैसले के विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी बनाकर विरोध दर्ज कराया ।
- जून 1989- इस विवाद पर प्रथम बार किसी राजनैतिक दल भारतीय जनता पार्टी ने इस मामले में विश्व हिंदू परिषद को औपचारिक समर्थन दिया ।
- नवंबर 1989- लोकसभा चुनाव के कुछ महीनों पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक राम मंदिर के शिलान्यास की इजाजत दी ।
- 25 सितंबर 1990- बीजेपी अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी ने गुजरात के सोमनाथ से उत्तर प्रदेश के अयोध्या तक रथ यात्रा निकाली ताकि हिंदुओं को इस महत्वपूर्ण मु्द्दे से अवगत कराया जा सके । हजारों कार सेवक अयोध्या में इकट्ठा हुए । इस यात्रा के बाद व्यापक स्तर पर साम्प्रदायिक दंगे हुए।
- नवंबर 1990- आडवाणी की रथ यात्रा के बिहार में पहुंचते ही उनकी गिरफ्तारी के बाद बीजेपी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह की सरकार से समर्थन वापस ले लिया ।
- 6 दिसंबर 1992- यह दिन ऐतिहासिक दिन के तौर पर याद रखा जाता है, इस रोज हजारों की संख्या में कार सेवकों ने अयोध्या पहुंचकर बाबरी मस्जिद ढहा दिया और अस्थायी राम मंदिर बना दिया गया । चारों ओर सांप्रदायिक दंगे होने लगे, उस समय उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी तब मुख्यमंत्री मुलायमसिंघ यादव की सरकार ने कारसेवकों पर गोलियां चलाई, जिसमें लगभग 2000 लोगों के मारे जाने का रिकॉर्ड है ।
- 16 दिसंबर 1992- तब विवादित परिसर में हुई तोड़-फोड़ की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया । जज एमएस लिब्रहान के नेतृत्व में इसकी जांच शुरू की गई ।
- सितंबर 1997- विवादित ढांचा बाबरी मस्जिद ढहाए जाने की सुनवाई कर रही विशेष अदालत ने इस बारे में 49 लोगों को दोषी करार दिया, जिसमें बीजेपी के कुछ प्रमुख नेताओं का नाम भी शामिल रहे ।
- वर्ष 2001- विश्व हिन्दू परिषद ने मार्च 2002 को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए डेडलाइन तय कर दी ताकि जल्द से जल्द मंदिर का निर्माण शुरू किया जा सके ।
- अप्रैल 2002- इलाहाबाद हाईकोर्ट के तीन जजों की पीठ ने अयोध्या के विवादित स्थल पर मालिकाना हक को लेकर सुनवाई आरंभ की ।
- मार्च-अगस्त 2003- इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने अयोध्या में जांच के लिए खुदाई शुरू की । पुरातत्वविदों ने कहा कि मस्जिद के नीचे मंदिर के अवशेष के प्रमाण मिले हैं, हालांकि इसे लेकर भी अलग-अलग मत थे ।
- जुलाई 2009- इस लिब्रहान आयोग गठन के लगभग डेढ़ दशक बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपनी जांच रिपोर्ट सौंपी थी । जिसमें विवादित स्थल को तीन भागों में बांटने का आदेश दिया गया , प्रथम भाग – राम जन्मभूमि, दूसरा भाग – निर्मोही अखाड़ा एवं तीसरा भाग – सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया गया ।
- 28 सितंबर 2010- उसक निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को विवादित मामले में फैसला देने से रोकने वाली याचिका खारिज कर दी ।
- 30 सितंबर 2010- इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटा, इसमें एक हिस्सा राम मंदिर, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा निर्मोही अखाड़े को दिया गया.
- 9 मई 2011- सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी ।
- 21 मार्च 2017- सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न पक्षकारों से आपसी सहमति से विवाद सुलझाने की सलाह दी ।
- 19 अप्रैल 2017- सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले में बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कई नेताओं के खिलाफ आपराधिक केस चलाने का आदेश दिया ।
- 1 दिसंबर 2017- लगभग 32 सिविल सोसाइटी सदस्यों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के वर्ष 2010 के फैसले को चुनौती दी ।
- 8 फरवरी 2018- सुप्रीम कोर्ट ने उपरोक्त सिविल अपील पर सुनवाई शुरू कर दी ।
- 20 जुलाई 2018- राम जन्मभूमि मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा ।
- 29 अक्टूबर 2018- सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जल्द सुनाई पर इनकार करते हुए सम्पूर्ण प्रकरण जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया ।
- 9 दिसंबर 2019- दिन शनिवार को Ram Janmbhoomi Dispute पर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने Ayodhya Verdict पर एक सर्वसम्मत फैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया कि अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि थी, पूरी 2.77 एकड़ विवादित भूमि ट्रस्ट को सौंप दी और सरकार को वैकल्पिक स्थल के रूप में सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया।
- 5 अगस्त 2020: अयोध्या में राम जन्मभूमि पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने मंदिर निर्माण का भूमि पूजन Ram Mandir Bhoomipujan कर शिलान्यास किया।
राम मंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन – Ram Mandir Bhoomipujan
हिन्दू संस्कृति की अस्मिता को कलंकित करने वाला यह ऐतिहासिक कलंक 5 अगस्त 2020 को धुला था। 5 अगस्त 2020 को राममंदिर निर्माण के लिए भूमिपूजन के ‘दिव्य क्षण’ की प्रतीक्षा और संघर्ष में रामभक्तों की कई पीढ़ियां अपने आराध्य प्रभु श्रीराम का मंदिर बनाने की अधूरी कामना के साथ उनके श्री चरणों में लीन हो गईं थीं।
लेकिन 5 अगस्त 2020 को वह शुभ क्षण आया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों द्वारा असंख्य सनातनी रामभक्त हिन्दुओं के संघर्ष, त्याग और तप की पूर्णाहुति हुई Ram Mandir Bhoomipujan के रूप में । उस दिन सम्पूर्ण हिन्दू समाज के आनंद की कोई सीमा नहीं थी। इसलिए हिन्दू समाज के लिए 5 अगस्त का दिन आधुनिक ‘दीपावली’ त्योहार के समान है।
5 अगस्त वर्ष 2019 और 2020 (Ram Mandir Bhoomipujan)की दोनों ही घटनाएं भारत के इतिहास की सुखद और स्वर्णिम अक्षरों में अंकित होने वाली घटनाएं हैं। दोनों ही घटनाएं देश और सांस्कृतिक महत्त्व का मनोबल बढ़ाने वाली हैं और देश व धर्म विरोधियों की छाती पर मूंग दलने वाली हैं।
Importance of Ram Mandir Bhoomipujan
5 अगस्त 2020 को हुआ राम मंदिर भूमिपूजन, वह एक ऐतिहासिक क्षण था जो हिन्दू संस्कृति और भारतीय समाज के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह एक दिन था जब भारतीय समाज ने अपनी अस्मिता को स्थापित किया और श्रीराम के मंदिर के निर्माण के प्रति अपनी पूर्ण समर्पणता का प्रदर्शन किया।
इस दिन का महत्व है क्योंकि यह वह समय था जब लंबे समय से चल रहे विवाद का समापन हुआ और भगवान राम के मंदिर के निर्माण का मार्ग साफ हो गया। यह देशवासियों के बीच एकता और सामंजस्य की भावना को बढ़ावा देने वाला एक महत्वपूर्ण क्षण था।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा भूमिपूजन के मौके पर दिए गए भाषण ने राष्ट्र को एक साथ लाने का संकेत किया और भारतीय समाज को एक नए युग की शुरुआत में एकजुट होने का मौका दिया। इस दिन का महत्व आज भी सभी हिन्दू समुदाय के लिए अत्यधिक है और इसे एक समृद्धि और समर्पण के साथ याद किया जाता है।
Read for Ram Mandir Bhoomipujan : Construction of Ayodhya Ram Mandir
FAQs
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 (Article 370) क्या है ?
धारा 370 भारतीय संविधान का एक विशेष अनुच्छेद था जो जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान करता था। इसके अंतर्गत जम्मू और कश्मीर राज्य को स्वशासन और अपना संविधान बनाने का अधिकार एवं भारतीय संविधान के तहत निर्मित संसद के किसी भी प्रस्ताव को तब तक लागू नहीं किया जा सकता था जब तक कि जम्मू कश्मीर की विधान सभा उसपर अपनी सहमति व्यक्त नया करे । इस व्यवस्था से भारतीय हित के किसी भी निर्णय का जम्मू कश्मीर को कोई लाभ नहीं मिल रहा था । और यहां के निवासियों को भारत से अलग नागरिकता प्रदान की गई थी। यह Article 370, भारत की आजादी के दौरान विभाजन के समय, जिसमें जम्मू और कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया गया था , गत 5 अगस्त 2019 को समाप्त कर दिया गया है।
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Article 370 को कब हटाया गया ?
धारा 370 को हटाया गया था वह 5 अगस्त 2019 को हुआ था। इस दिन, भारत सरकार ने संविधान (सात सौ एकासी संशोधन) अधिनियम के माध्यम से धारा 370 को समाप्त कर जम्मू और कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया।
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When was article 370 removed ?
Article 370 was revoked on August 5, 2019. On this day, the Indian government abolished Article 370 through the enactment of the Constitution (Application to Jammu and Kashmir) Order effectively ending the special status of Jammu and Kashmir. As a result, the region was reorganized into two separate Union Territories: Jammu and Kashmir and Ladakh.
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What is article 370 in simple words ?
In simple terms, Article 370 was a provision in the Indian Constitution that granted special autonomy to the region of Jammu and Kashmir. It allowed the state to have its own constitution and decision-making powers except in certain matters like defense and foreign affairs which remained under the jurisdiction of the Indian government. However, on August 5, 2019 the Indian government revoked Article 370 thereby ending the special status of Jammu and Kashmir and integrating it more closely with the rest of the country.
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What was article 370 ?
Article 370 was a provision in the Indian Constitution that granted special autonomy to the region of Jammu and Kashmir. It allowed Jammu and Kashmir to have its own constitution and decision-making powers, except in certain matters like defense and foreign affairs which remained under the jurisdiction of the Indian government. This special status was intended to be a temporary measure but it continued for several decades. On August 5, 2019, the Indian government revoked Article 370 leading to the reorganization of Jammu and Kashmir into two separate Union Territories: Jammu and Kashmir, and Ladakh.
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What is article 370 in hindi ?
धारा 370 एक ऐसा प्रावधान था जो भारतीय संविधान में जम्मू और कश्मीर क्षेत्र को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करता था। भारत पाकिस्तान विभाजन 1949 के दौरान भारतीय संविधान के लिखित आर्टिकल होने वाली इस धारा ने जम्मू और कश्मीर को उसका स्वयं का संविधान, एक अलग ध्वज और महत्वपूर्ण निर्णय लेने की अनुमति दी, जिससे भारतीय संघ में इस राज्य को एक विशेष स्थान प्राप्त हुआ।
ऐतिहासिक संदर्भ:
धारा 370 की महत्ता 1947 में जम्मू और कश्मीर के महाराजा द्वारा किए गए सम्झौते के परिणामस्वरूप हुई थी। धारा 370 द्वारा प्रदान की जाने वाली विशेष सुविधा ने इस राज्य को भारतीय संघ में सम्मिलित करने की प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए एक अस्थायी उपाय के रूप में लागू किया था।
धारा 370 की मुख्य विशेषताएँ:
1. भारतीय संविधान का सीमित अनुप्रयोग: धारा 370 ने यह स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान केवल सीमित रूप में जम्मू और कश्मीर को लागू होगा। राज्य के पास अपना संविधान था और भारतीय संविधान के प्रावधान केवल उन क्षेत्रों में लागू थे जो भारत में संविलियन के दस्तावेज में उल्लिखित थे।
2. निर्णय लेने की स्वतंत्रता: जम्मू और कश्मीर राज्य सरकार को अपना कानून बनाने का अधिकार होता था । केवल रक्षा, संचार और विदेशी मामलों के क्षेत्र में भारत सरकार का नियंत्रण में रहता था ।
3. विशेष नागरिकता अधिकार: राज्य के पास अपना झंडा था और जम्मू और कश्मीर के निवासियों को दोहरी नागरिकता प्राप्त थी – भारतीय नागरिकता और जम्मू कश्मीर राज्य की नागरिकता।
4. राज्य की स्वतंत्रता की सुरक्षा: यह प्रावधान यह निश्चित करने के लिए था कि जम्मू और कश्मीर को उसकी विशेष पहचान का सम्मान किया जाए और इसके विभिन्न जनसांख्यिक और सांस्कृतिक संरचना को समर्थन किया जाए।
धारा 370 का रद्दीकरण: Abroagation of Article 370
5 August 2019 को भारत सरकार ने भारतीय संसद में एक संविधान संशोधन विधेयक लाकर Artcle 370 को रद्द करने का ऐतिहासिक कदम उठाया ।