अयोध्या की स्थापना किसने की ?
प्राचीन अयोध्या की स्थापना वाल्मीकि रचित रामायण के अनुसार सूर्यपुत्र वैवस्वत मनु ने की थी । इतिहास के अनुसार मनु लगभग 6673 ईसा पूर्व हुए थे । ब्रह्मा के पुत्र मरीचि से कश्यप और कश्यप से विवास्वान और विवासवान से वैवस्वत मनु हुए थे । मनु महाराज के 10 पुत्रों में ईक्षवाकू, कुशनाम, अरिष्ट,धृष्ट, नरीक्षयांत, करुष, शरयाती और पृषध थे । इसमें ईक्षवाकू कुल का ही सबसे अधिक विस्तार हुआ था । इसी ईक्षवाकू कुल में ही अगले वंशजों में प्रभु श्री राम हुए थे । अयोध्या पर महाभारत काल तक इसी वंश के लोगों का शासन रहा था ।
अयोध्या की स्थापना कैसे हुई ?
अयोध्या की स्थापना के बारे में भारतीय धर्मग्रंथों में कई कहानिया मिलती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब मनु महाराज ने ब्रमहाजी से एक नगर निर्माण की बात कही, तब ब्रह्मा जी को लेकर मनु महाराज विष्णु जी के पास गए । विष्णु जी ने साकेत नागरी के समीप एक उचित स्थान बताया । इस नगरी को बसाने के लिए विष्णुजी ने मनु के साथ देवशिल्पी विश्वकर्मा जी को भेजा । भविष्य में होने वाले विष्णुजी के अवतार राम के लिए भी उचित स्थान का चयन हो सके इसलिए उनके साथ वशिष्ठ जी को भी भेजा । इस नवीन नगर के लिए सरयू नदी के किनारे एक उचित स्थान का चयन किया गया । इसी स्थान पर विश्वकर्मा जी ने अयोध्या नगर का निर्माण किया । इसके के अलावा स्कंद पुराण के अनुसार अयोध्या नगर भगवान विष्णु के विशाल चक्र पर विराजमान है ।
अयोध्या की स्थापना के बाद प्रमुख शासक कौन कौन रहे ?
उअयोध्या की स्थापना के बाद त्तर भारत के अधिकांश हिस्सों में Ayodhya Empire के ईक्षवाकू वंश ने शासन किया था । मनु के एक पुत्र ऐल से चंद्रवंश का उद्भव हुआ जबकि इनके दूसरे पुत्र ईक्षवाकू से सूर्यवंश का प्रारंभ माना जाता है । इसी सूर्यवंश में आगे चलकर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्म हुआ था । भगवान श्री राम के बाद उनके पुत्र लव ने श्रावस्ती नगर बसाया और ऐसा भी ज्ञात होता है कि राम के दूसरे पुत्र कुश ने अयोध्या का पुनर्निर्माण करवाया था । इसके 44 पीढ़ियों तक इस नगर का वर्णन मिलता है । श्री राम के बाद से महाभारत काल तक अयोध्या का वर्णन मिलता है । महाभारत युद्ध के बाद अयोध्या उजड़ गई थी लेकिन अगली 14 वीं सदी तक श्री राम जन्मभूमि का अस्तित्व मिलता है ।
श्री राम जन्मभूमि का अस्तित्व
महाभारत काल के ब्राह्यदरथ के अभिमन्यु के द्वारा मारे जाने के बाद भी इस नगर का उल्लेख मगध के मौर्यो के अलावा गुप्त अनूर कन्नौज शासकों के समय भी अयोध्या पर शासन किया गया था । बाद में महमूद गजनी के भांजे सैयद सालार ने तुर्क शासन की स्थापना की । सैयद सालार बहराइच में 1033 ई में मारा गया । तब जौनपुर में शक राज्य स्थापित हुआ । अयोध्या उसे समय शकों के अधीन हो गया । जब शक शासक महमूद शाह के शासनकाल में 1440 मे अयोध्या के स्थान पर शकों के अधीन रहा । 1526 ईस्वी में बाबर ने मुगल राज्य की स्थापना की । उसके सेनापति मीर बाकि ने इसी राम जन्मभूमि पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया । इसी मस्जिद को 1992 में राम जन्मभूमि आंदोलन के कारण ढहा दिया गया ।
प्राचीन अयोध्या का क्षेत्रफल
अयोध्या की स्थापना के बाद रघुवंशीय राजाओं की राजधानी अयोध्या बहुत समय तक Ayodhya Empire रही है । पहले यह कौशल जनपद की राजधानी हुआ करती थी । प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि इसका क्षेत्रफल 96 वर्ग मील था । वाल्मीकि रामायण के पांचवें सर्ग में अयोध्या नगर का वर्णन विस्तार से किया गया है । वाल्मीकि रामायण में उल्लेख मिलता है कि अयोध्या नगरी 12 योजन लंबी और 3 योजन चौड़ी थी । प्रसिद्ध चीनी यात्री हवेनसॉन्ग ने जब भारत का दौरा किया था, तब उसने अयोध्या को “पिकोसिया” संबोधित किया था , उसके अनुसार उसकी कुल परिधि 16 ली (एक चीनी ली = एक 1/6 मिल) की थी । संभवत उन्होंने इसे बौद्ध के अनुयाइयों के साथ में ही सम्मिलित किया होगा । आईन – ए – अकबरी के अनुसार अयोध्या नगर की कुल लंबाई 148 कोस और चौड़ाई 32 कोस मानी गई है ।
अयोध्या की स्थापना के बाद अयोध्या नगर की भीतरी संरचना
अयोध्या की स्थापना के बाद वाल्मीकि कृत रामायण में अयोध्या नगर की भीतरी संरचना के बारे में बहुत सुंदर वर्णन मिलता है । वह पूरी चारों ओर फैली हुई बड़ी-बड़ी मार्गो पर नित्य जल छिड़का जाता था और फूल बिछाए जाते थे । स्वर्ग के देवता इंद्र के अमरावती नगर की तरह महाराजा दशरथ ने इस नगर को सजाया था । इस नगर में महाराजा दशरथ उसी प्रकार रहते थे जैसे स्वर्ग में इंद्र निवास करते हैं ।
महर्षि वाल्मीकि आगे लिखते हैं कि इस नगर में बड़े-बड़े सुंदर बाजार क्षेत्र और नगर की रक्षा के लिए चतुर शिल्पियों द्वारा बनाए हुए हर प्रकार के यंत्र और सुत , मागद, बंदीजन भी रहते थे । वहां के निवासी अत्यधिक संपन्नता के साथ बड़ी-बड़ी अटारियों वाले मकान, जो ध्वज पताकाओं से सुशोभित थे और परकोटे की दीवारों पर सैकड़ो तोपनुमा यंत्र लगी हुए थे ।
महर्षि वाल्मीकि अपने प्रसिद्ध ग्रंथ रामायण में लिखते हैं कि स्त्रियों की नाट्य समितियां की भी यहां कमी नहीं थी और हर जगह जगह उद्यान निर्मित थे । आम के बड़े-बड़े वृक्षों का समूह , नगर की शोभा बढ़ाते थे । नगर के चारों ओर लंबे-लंबे वृक्षों की कतारें ऐसी लगती थी जैसे अयोध्या रूपी स्त्री ने करधनी पहनी हो । यह नगरी विशाल किले और खाई से परिपूर्ण थी । जहां किसी भी प्रकार से शत्रु अपने हाथ नहीं लगा सकते थे । हाथी, घोड़े, बैल, ऊंट, खच्चर एवं परिवहन हेतु बड़े-बड़े रथ नुमा वाहन प्रत्येक स्थान पर दिखाई पड़ते थे । भूमि पर बड़ी मजबूत और सघन मकान की बस्ती हुआ करती थी । कुओं में मीठा जल भरा हुआ रहता था । नगाड़े, मृदंग, वीणा आदि की ध्वनि से अयोध्या नगर हमेशा प्रतिद्वनित हुआ करता था । धरती पर इसके मुकाबले कोई भी दूसरा नगर नहीं था । इस नगर में कोई भी गरीब नहीं था बल्कि कम धन वाला भी कोई न था । जितने भी परिवार उसे नगर में रहते थे वहां सब के पास धन संपत्ति , गाय, बैल और घोड़े हुआ करते थे ।
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