Sawai Raja Jaysingh एक उत्कृष्ट राजा और राजनीतिक नेता थे जो जयपुर रियासत के शासक थे। उनका जन्म 3 नवंबर 1688 को हुआ था और उनकी पुण्यतिथि 21 सितंबर है। Sawai Raja Jaysingh को वीरता और वाक्पटुता के लिए जाना जाता है और उन्हें जयपुर के निर्माता के रूप में भी जाना जाता है।
सवाई जयसिंह (Sawai Raja Jaysingh) का जन्म उनके पिता बिशन सिंह के घर 3 नवंबर 1688 में हुआ था, जब मिर्जा राजा जयसिंह की मृत्यु के बाद 20 साल हो गए थे। उनका बचपनीय नाम जय सिंह था और उनके छोटे भाई का नाम विजय सिंह था। हालांकि उनमें वीरता और वाक्पटुता भरपूर थी और इस कारण उन्हें जय सिंह के रूप में जाना गया।
कठिन परिस्थिति में बने राजा
Sawai Raja Jaysingh का बचपन बहुत ही कठिनाई से गुजरा । उनके पिता मिर्जा जय सिंह के बाद जयपुर रियासत को मुगल बादशाहों के साथ लगातार जूझना पड़ा। मुगल बादशाह राजपूताने के राजाओं को विभिन्न कठिन अभियानों में भेजते थे जिसमें राजपुताना के कई राजा मारे जा चुके थे। इस अवस्था में जोधपुर के जसवंत सिंह, जयपुर के जगतसिंह और अन्य कई राजा भी थे जो विपरीत परिस्थितियों में समाप्त हो गए थे।
मिर्जा जय सिंह के बेटे रामसिंह को औरंगजेब ने दक्षिण भेजने का आदेश दिया लेकिन उसने इसे मना कर दिया और इसके परिणामस्वरूप औरंगजेब ने जयपुर पर अपना गुस्सा निकाला। उन्होंने जयपुर राज को सभी पदों और भूमि से हटाकर जयपुर की भूमि को खालसा घोषित कर दिया। इसके परिणामस्वरूप राज्य का प्रशासन बदल गया और आर्थिक स्थिति सहित सम्पूर्ण प्रशासन मुग़ल साम्राज्य के अधीन आ गया ।
राज्य की कठिन स्थिति से परेशान होकर बिशनसिंह को औरंगजेब की बात मानकर अफगानिस्तान जाना पड़ा। जयसिंह को औरंगजेब ने अपने पास रख लिया और केवल 10 वर्ष की आयु में 1698 में उन्हें दक्षिण भारत के युद्ध में शामिल होना पड़ा। यहाँ जयसिंह की वीरता को देखकर औरंगजेब ने उन्हें उनके परदादा मिर्जा सिंह से सवा गुणा कहकर “सवाई” कहा। इसके बाद अफगानिस्तान की कड़ी सर्दी में बिशन सिंह की मौत हो गई। केवल 12 वर्ष की आयु में जयसिंह ने आमेर के राजा का पद संभाला। उन्होंने आमेर को छोड़कर नए शहर जयपुर की स्थापना की और इसे राजस्थान के शीर्ष पर पहुँचाया।
Sawai Raja Jaysingh का मुगलों से कठिन संघर्ष
Sawai Raja Jaysingh के राज्य में न उचित प्रशासन था, न पैसा था और न ही शक्ति थी और इस परिस्थिति में एक 12 साल का राजा निर्णय लेने के लिए असहाय था। औरंगजेब के आदेशों के अनुसार, जयसिंह को मामूली मनसबदार का दर्जा दिया और उसे बार-बार अपमानित किया गया। इस दौरान बालक जयसिंह ने अपनी कूटनीतिक चालों से औरंगजेब को हमेशा परेशान किया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद, उत्तराधिकार संघर्ष में बहादुर शाह प्रथम ने जयसिंह के आमेर पर हमला किया और इसका नाम मोमिनाबाद रख दिया।
Sawai Raja Jaysingh ने सूझबूझ से काम करते हुए राजपूत शक्तियों को एकत्रित कर मेवाड़ और मारवाड़ के राजाओं अमर सिंह-II और अजीत सिंह से संयुक्त समझौता किया ताकि जयपुर पर अधिकार किया जा सके। मारवाड़ के दुर्गादास राठौड़ की सहायता से मुगल सेना के फौजदारों हुसैन खां, सैयद हुसेन खां, अहमद खां और गारात खां को हराकर आमेर पर अधिकार कर लिया। इसके बाद सवाई जय सिंह की शक्ति में वृद्धि हुई और उनका प्रभाव और बढ़ा।
हिंदुओं पर से जाजिया कर हटवाया
दिल्ली में उस समय मुगल शासक फर्रुखसियर का शासन था और सैयदों और मुगल बादशाहों के बीच दुश्मनी बढ़ चुकी थी। जयसिंह ने बादशाह फर्रुखसियर को बहुत समझाया कि अविश्वनीय सैयदों से युद्ध करके उन्हें रास्ते से हटा दे नहीं तो वह तुम्हें मार देंगे, पर फर्रुखसियर सैयदों की खुशामद में लगा रहा और जय सिंह को दिल्ली से भेज दिया। इसके कुछ ही दिन बाद सैयद भाइयों ने दिल्ली में बादशाह फर्रूखसियर की हत्या कर दी।
इस खबर से Sawai Raja Jaysingh की दूरदर्शिता और समझदारी के चर्चे फैल गए और राजपुताना, मालवा, बुन्देलखण्ड के राजा और मराठे तक इनकी राय और सलाह मानने लग गए। सैय्यदों के पतन के बाद मुहम्मदशाह मुगल शासक बना, उसने महत्वपूर्ण मुद्दों पर सलाह लेने के लिए सवाई जय सिंह को दिल्ली बुलाया।
बदले में दो करोड़ देने की पेशकश की पर Sawai Raja Jaysingh जी ने इसे ठुकराकर हिन्दुओं पर से जजिया कर हटाने की शर्त रखदी, जिसे मुहम्मदशाह ने मान लिया। इस सफलता पर मेवाड़ के महाराणा समेत अनेक हिन्दू राजा प्रसन्न हुए और जय सिंह का अभिनन्दन किया।
जयपुर शहर का निर्माण
पहाड़ों के बीच बसे छोटे से किले रूप आमेर राज्य को Sawai Raja Jaysingh ने भविष्य की संभावनाओं के लिए बहुत छोटा पाया और 1727 में अपनी राजधानी आमेर से जयपुर स्थानांतरित कर दी। सवाई जय सिंह की दूर दृष्टि और एक सुंदर और शास्त्रीय शहर बनाने की परिकल्पना को साकार करने के लिए महान वास्तुकार विघाधर भट़टाचार्य ने चतुर्भुज आकार वाले नियोजन से एक सात द्वारों वाले शानदार नगर बनाया। इतनी चौड़ी सड़कें बनवाई कि आज के ट्रैफिक को भी वह सम्भाल ले रही हैं। जयपुर की गली गली में Sawai Raja Jaysingh ने इतने मंदिर बनाए और इतने विद्वानों को बसाया कि थोड़े ही समय में जयपुर छोटी काशी कहलाने लगा।
विभिन्न व्यवसायों के लिए अलग-अलग क्षेत्र चुनकर सवाई जयसिंह ने जयपुर को बसाया । चौपड़ों पर महालक्ष्मी, महाकाली, और महासरस्वती के अनुष्ठान करके जलस्रोत बनाए और उनका अभिमंत्रित जल उन समुदायों तक पहुँचाया। सवाई जयसिंह ने जयपुर को हर कला में अग्रणी बनाने के लिए देशभर से कलाकार, व्यवसायी, विद्वान और विशेषज्ञ बुलाकर उन्हें जयपुर में बसाया। इससे जयपुर शिल्पकला, चित्रकारी, मीनाकारी, जवाहरात, नक्काशी, हस्त निर्मित कागज, रत्नाभूषण, ब्लू पॉटरी, छीपाकला, धर्मक्षेत्र, ज्योतिष, व्यापार से लेकर सभी व्यवसायों में श्रेष्ठ बन गया।
सवाई जय सिंह और हिन्दू साहित्य
हिन्दुओं के विशाल ग्रंथों के कारण विद्वानों के लिए भी धर्म की हर बात का निर्णय आसान नहीं था इसके लिए Sawai Raja Jaysingh ने सभी शास्त्रों पर शोध करवाकर ‘जय सिंह कल्पद्रुम’ की रचना करवाई जो आजतक राजस्थान में प्रचलित है। उनके राज्य में पंडित जगन्नाथ सम्राट, पंडित पुण्डरीक रत्नाकर, विद्याधर चक्रवर्ती, शिवानन्द गोस्वामी, श्रीकृष्ण भट्ट कविकलानिधि, ब्रजनाथ भट्ट जैसे मूर्धन्य विद्वान रहते थे।
इसलिए उनके समय संस्कृत, ब्रजभाषा, वास्तु, धर्मशास्त्र, ज्योतिष, खगोल, इतिहास एवं धर्म के ऊपर ‘ब्रह्मसूत्राणभाण्यवृत्ति’, ‘पद्मतरंगिणी’, ‘ईश्वर विलास’, ‘वैराग्य शतक’, ‘साहित्यसार संग्रह’ जैसे अनेक ग्रन्थ लिखे गए। महाराज जय सिंह स्वयं एक बहुत बड़े ज्योतिषी थे और उन्होंने ‘जयसिंह कारिका’ नाम का ज्योतिष ग्रन्थ लिखा था। सब जानते हैं कि इन्होंने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, बनारस और मथुरा में सौर वेधशालाएं बनवाई थीं। इन्होंने जयपुर से एक सूर्यसिद्धान्त पर आधारित एक पंचांग छपवाया ‘जयविनोदी पंचांग’ जो आज 280 वर्ष बाद भी छप रहा है।
भारत का अन्तिम अश्वमेध यज्ञ और जयसिंह
महाराजा सवाई जयसिंह (Sawai Raja Jaysingh) ने ‘व्रात्यस्तोम यज्ञ’, ‘पुरुषमेध यज्ञ’, ‘सम्राट यज्ञ’, ‘सर्वमेध यज्ञ’, ‘सोम यज्ञ’ जैसे अत्यंत कठिन कर्मकांड पुनः जीवित किए और रत्नाकर भट और जगन्नाथ सम्राट जैसे विद्वान ब्राह्मणों द्वारा संपन्न कराए। 1734 में जयसिंह ने जो पहला अश्वमेध यज्ञ किया और इसके बाद 1742 में बहुत बड़े स्तर पर दूसरा अश्वमेध यज्ञ करवाया। इस यज्ञ में जयपुर में अनेक मंदिर बने और सोने चांदी का इतना दान दिया गया कि किंवदन्ती बन गई कि सवाई जय सिंह ने अपने यज्ञ में तीन करोड़ ब्राह्मणों को भोजन करवाया था ।
कर्नल जेम्स टॉड को लिखना पड़ा क, ‘महाराज सवाई जयसिंह ने जयपुर को हिन्दू-विद्याओं का शरणस्थल बना दिया था। इस तरह भारत में सदियों से यज्ञादि की जो परम्परा लगभग बन्द हो चुकी थी उन्हें महाराजा सवाई जय सिंह ने जयपुर राज्य में फिर से प्रारम्भ किया।’ इन यज्ञों से सवाई जय सिंह देशभर में धर्म के प्रतीक के रूप में देखे जाने लगे।
अनेक मंदिरों का पुनरुद्धार और निर्माण
औरंगजेब ने अपने शासन काल में पूरे मथुरा वृन्दावन के ब्रजक्षेत्र का विध्वंस कर दिया था। अनेक मंदिरों की मूर्तियाँ लेकर भक्तों को भागना पड़ा था। इनमें से एक थे गोविन्ददेव जी, जिनका 7 मंजिला मंदिर औरंगजेब ने तुडवा दिया था उनका मंदिर जयसिंह ने अपने महल के ठीक सामने जयपुर में बनवाया।
इसके बाद Sawai Raja Jaysingh ने मथुरा वृन्दावन की पूरी धार्मिक व्यवस्था का निरीक्षण करके उसे सुव्यवस्थित किया और पूरे ब्रजक्षेत्र का पुनरुद्धार करवाया । गोवर्धन पर गोवर्धन मन्दिर, मथुरा में सीताराम मंदिर और यमुना पर घाटों समेत मथुरा वृन्दावन का कायाकल्प कर दिया।
जयसिंह की भारत को देन
Sawai Raja Jaysingh ने अयोध्या में श्रीरामजन्मभूमि को मुक्त कराने का भी प्रयास किया और उस पूरे क्षेत्र को खरीद लिया, पर बीच में ही उनकी मृत्यु हो जाने से योजना पूरी नहीं हो सकी। आज भी अयोध्या में रामजन्मभूमि क्षेत्र का नाम जयसिंहपुरा है।
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देश में राजस्थान से लेकर अवध और पुरी तक अनेक मंदिरों पर पाँच रंगों की ध्वजा दिखाई देती है, उसका अर्थ था यह मंदिर जयपुर राज्य द्वारा संरक्षित हैं इसलिए इनपर कोई अपनी आँख उठाकर न देखे। इसलिए इतिहास में देखने से पता चल जाता है कि जिन क्षेत्रों में जयपुर राज्य प्रभावहीन थे पर जब औरंगजेब के मुगल दरबार में जयपुर की शक्ति कमजोर थी। उसी समय अधिकांश हिन्दू मंदिरों का विध्वंस हुआ, मिर्जा राजा जय सिंह की मृत्यु के बाद मुगल दरबार में जयपुर का प्रभाव खत्म हो गया था जिससे औरंगजेब निरंकुश हो गया और उसी समय सर्वाधिक मंदिर तोड़े गए।
महाराज सवाई जय सिंह Sawai Raja Jaysingh वह कड़ी हैं जो मध्यकाल और आधुनिककाल को जोड़ती हैं, जो परंपरा की दृष्टि रखकर भी दूर देख लिया करते थे। इसलिए वह प्रथम हिन्दू शासक थे जिन्होंने सतीप्रथा को रोकने और विधवाओं को सम्मान दिलाने की कोशिश की। उन्होंने एक ऐसा नगर बसाया जो 300 साल बाद की आवश्यकताओं को पूरा कर सके। उन्होंने उन विद्वानों और कलाकारों को शरण दी, जिससे वो अपनी विद्या को बचा सकें और बढ़ा सकें। उन्होंने उन मंदिरों को बनवाया जिनके शिखर तोड़ दिए गए थे।
श्रीकृष्णभट्ट ने लिखा कि ‘सवाई जय सिंह अन्तिम दिनों में गोविन्ददेव जी के ध्यान में ही लीन रहने लग गए थे।’ इस तरह सितम्बर 21, सन 1743 को जयपुर में हिन्दू संस्कृति के पुनरुद्धारकर्ता महाराजा सवाई जय सिंह का निधन हो गया। ऐसे वीर ऐतिहासिक एवं दूरदर्शी महापुरुष को समस्त भरतवंशियों एवं सनातन प्रेमियों का नमन ।
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