छत्तीसगढ़ में भी राम वनगमन पथ (Ram Van Gaman Path in Chhattisgarh) का काम शुरू हो गया है। छत्तीसगढ़ में भगवान राम ने काफी समय बिताया है। माता कौशल्या स्वयं छत्तीसगढ़ की राजकुमारी थी, वहीं भगवान राम ने भी अपने वनवास के दौरान काफी वक्त छत्तीसगढ़ में गुजारा। आज भी छ्त्तीसगढ़ में ऐतिहासिक मान्यताओं के आधार कई ऐसे स्थान मिल जाएंगे, जिन्हें भगवान राम से जोड़कर देखा जा सकता है। रामायण के अनुसार भगवान राम ने वनवास का समय दंडकारण्य में बिताया। छत्तीसगढ़ का एक बहुत बड़ा हिस्सा ही प्राचीन समय का दंडकारण्य माना जाता है। अब उन जगहों को नई सुविधाओं के साथ विकसित किया जा रहा है, जिन्हें लेकर यह विश्वास किया जाता है कि वनवास के वक्त भगवान यहीं रहे।
कोरिया जिले से सुकमा तक बन रहे राम वन गमन पथ में कदम-कदम पर भगवान श्रीराम के पदचिन्हों दर्शन होंगे। राम वन गमन पथ की कुल लम्बाई लगभग 2260 किलोमीटर है। इन स्थानों पर किनारे जगह-जगह साइन बोर्ड, श्रीराम के वनवास से जुड़ी कथाएं देखने और सुनने को मिलेंगी। इन रास्तों पर कई तरह के पेड़ लगाए जा रहे हैं जो वैसा ही महसूस कराएंगे जैसा भगवान राम के वनवास के वक्त को लेकर यादें लोगों के जेहन में हैं।
राम के वनवास काल से संबंधित 75 स्थानों को चिन्हित करके उन्हें नये पर्यटन स्थल के रुप में आपस में जोड़ा जा रहा है। पहले चरण में उत्तर छत्तीसगढ़ में स्थित कोरिया जिले से लेकर दक्षिण के सुकमा जिले तक 9 स्थानों का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। ये सभी स्थान पूर्व से ही प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर हैं। वृक्षारोपण के जरिए अब इन्हें और अधिक हरा-भरा किया जा रहा है। सभी चयनित पर्यटन-तीर्थों पर सुगंधित फूलों वाली सुंदर वाटिकाएं भी तैयार की जा रही हैं । राम वन गमन के 528 किलोमीटर मार्ग के दोनों किनारों पर डेढ़ लाख से अधिक वृक्षों का रोपण वन विभाग द्वारा चालू वर्ष के दौरान किया गया है। इस पूरे मार्ग पर पीपल, बरगद, आम, हर्रा, बेहड़ा, जामुन, अर्जुन, खम्हार, आंवला, शिशु, करंज, नीम आदि के पेड़ों का रोपण शामिल हैं। राम वनगमन पथ से दुनियाभर के सामने जैव विविधता का दर्शन भी होगा।
इसकी शुरुआत रायपुर के पास चंदखुरी के माता कौशल्या मंदिर से हो चुकी है। लगभग 1400 किलोमीटर सड़कों के दोनों ओर वृक्षारोपण पूर्व से ही है। राम वन गमन पथ पर पहले चरण में 9 स्थानों का चयन किया गया है। सभी जगहों पर लैंड स्केपिंग प्री-कास्ट और फेब्रीकेशन वर्क, द्वार पर भगवान राम का धनुष तीर होगा।
राम वन गमन पथ के प्रथम चरण के लिए नौ स्थान चिह्नित किए गए हैं:-
- सीतामढ़ी-हरचौका (कोरिया)
- रामगढ़ (अंबिकापुर)
- शिवरी नारायण (जांजगीर-चांपा)
- तुरतुरिया (बलौदाबाजार)
- चंदखुरी (रायपुर)
- जिम (गरियाबंद)
- सिहावा-साऋषि आश्रम (धमतरी)
- जगदलपुर (बस्तर)
- रामाराम (सुकमा)
पहले चरण में ये आठ स्थल होंगे विकसित
सीतामढ़ी-हरचौका
यह स्थान छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में है। राम के वनवास का पहला पड़ाव यही माना जाता है। यह नदी के किनारे यह स्थित है, जहां गुफाओं में 17 कक्ष हैं। इसे सीता की रसोई के नाम से भी जाना जाता है।
रामगढ़ की पहाड़ी
सरगुजा जिले में रामगढ़ की पहाड़ी में तीन कक्षों वाली सीताबेंगरा की गुफा है। इसे देश की सबसे पुरानी नाट्यशाला कहा जाता है। विश्वास किया जाता है कि वनवास काल में राम यहां पहुंचे थे, जहां माता सीता का कमरा था। महान कवि कालीदास ने मेघदूतम की रचना यहीं की थी।
शिवरीनारायण
जांजगीर चांपा जिले के इस स्थान पर रुककर भगवान राम ने यहीं शबरी के जूठे बेर खाए थे। यहां जोक, महानदी और शिवनाथ नदी का संगम है। यहां नर-नारायण और शबरी का मंदिर भी है। मंदिर के पास एक ऐसा वट वृक्ष है, जिसके दोने के आकार के पत्ते हैं।
तुरतुरिया
बलौदाबाजार भाटापारा जिले के इस स्थान को लेकर किवंदती है कि महर्षि वाल्मीकि का आश्रम यहीं था। तुरतुरिया में ही लव-कुश की जन्मस्थली थी। बलभद्री नाले का पानी चट्टानों के बीच से निकलता है, जिससे तुरतुर की ध्वनि निकलती है, जिससे इसका नाम तुरतुरिया पड़ा।
चंदखुरी
रायपुर जिले के 126 तालाब वाले इस स्थान में जलसेन तालाब के बीच में भगवान राम की माता कौशल्या का मंदिर है। कौशल्या माता का दुनिया में यह एकमात्र मंदिर है जिसे माता कौशल्या की जन्मस्थली कहा जाता है, इसलिए यह राम का ननिहाल भी कहलाता है।
राजिम
गरियाबंद जिले का यह प्रयाग भी कहा जाता है, जहां सोंढुर, पैरी और महानदी का संगम है। जनश्रुति है कि वनवास काल में राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव की पूजा की थी, इसलिए यहां कुलेश्वर महाराज का विशाल मंदिर है।
सिहावा
धमतरी जिले के सिहावा की विभिन्न् पहाड़ियों में मुचकुंद आश्रम, अगस्त्य आश्रम, अंगिरा आश्रम, श्रृंगि ऋषि, कंकर ऋषि आश्रम, शरभंग ऋषि आश्रम एवं गौतम ऋषि आश्रम स्थित है। राम ने दण्डकारण्य के इन्हीं आश्रम में ऋषियों से भेंट कर कुछ समय व्यतीत किया था।
जगदलपुर
यह बस्तर जिले का मुख्यालय है जो चारों ओर वन से घिरा हुआ है। यह कहा जाता है कि वनवास काल में राम जगदलपुर क्षेत्र से गुजरे थे, यहां से चित्रकोट का रास्ता जाता है।
दूसरे चरण के बाद इनका होगा विकास
कोरिया – सीतामढ़ी घाघरा, कोटाडोल, सीमामढ़ी छतौड़ा (सिद्ध बाबा आश्रम), देवसील, रामगढ़ (सोनहट), अमृतधारा
सरगुजा – देवगढ़, महेशपुर, बंदरकोट (अंबिकापुर से दरिमा मार्ग), मैनपाट, मंगरेलगढ़, पम्पापुर
जशपुर-किलकिला (बिलद्वार गुफा), सारासोर, रकसगण्डा,
जांजगीर चांपा-चंद्रपुर, खरौद, जांजगीर
बिलासपुर-मल्हार
बलौदाबाजार भाटापारा – धमनी, पलारी, नारायणपुर (कसडोल)
महासमुंद-सिरपुर
रायपुर-आरंग, चंपारण्य
गरियाबंद-फिंगेश्वर
धमतरी – मधुबन (राकाडीह), अतरमरा (अतरपुर), सीतानदी
कांकेर-कांकेर (कंक ऋषि आश्रम)
कोंडागांव – गढ़धनोरा (केशकाल), जटायुशीला (फरसगांव)
नारायणपुर – नारायणपुर (रक्सा डोंगरी), छोटे डोंगर
दंतेवाड़ा – बारसूर, दंतेवाड़ा, गीदम
बस्तर- चित्रकोट, नारायणपाल, तीरथगढ़
सुकमा – रामाराम, इंजरम, कोंटा
“छत्तीसगढ़ में राम वनगमन से जुड़े 75 स्थलों को पर्यटन स्थल बनाने की प्रक्रिया जारी है। प्रथम चरण में, कोरिया जिले से लेकर सुकमा जिले तक 9 स्थलों को सुंदर और विकसित किया जा रहा है। इन सभी स्थलों पर प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं, और अब वृक्षारोपण के माध्यम से इन्हें और भी हरा-भरा बनाया जा रहा है। सभी चयनित पर्यटन स्थलों पर सुंदर बाग़ भी तैयार किए जा रहे हैं। राम वनगमन पथ पर 528 किलोमीटर मार्ग के दोनों किनारों पर वन विभाग द्वारा 1.5 लाख से अधिक पौधों का रोपण किया गया है। इस मार्ग पर पीपल, बरगद, आम, हर्रा, बेहड़ा, जामुन, अर्जुन, खम्हार, आंवला, शिशु, करंज, नीम आदि के पौधे लगाए गए हैं। राम वनगमन पथ के माध्यम से आपको दुनियाभर की जैव विविधता का भी दर्शन होगा।”
बहुप्रतीक्षित भारतीय संस्कृति के अग्रणी, विश्व नायक, समस्त मानव जाति को मानव जीवन जीने की प्रेरणा देने वाले एवं मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाने वाले प्रभु श्री राम का दर्शन करने अयोध्या स्थित विशाल एवं भव्य मंदिर में यदि आप जाना चाहते हैं तो श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट द्वारा समय समय पर दी जाने वाली जानकारी रखना आवश्यक है ।