भगवान राम जन्म के संबंध में धरती पर उनके अवतरण की घटना हमेशा से ही चर्चा का विषय रही है। इस संदर्भ में कई बार यह विचार उत्पन्न होता है कि क्या वाकई त्रेतायुग में अयोध्या के राजा राम विष्णु के अवतार थे, जिन्होंने अपनी अद्वितीय शक्तियों से असुर सम्राट रावण को पराजित किया था, या केवल एक महान राजा थे। इस चिंतन को समझने के लिए अनेक प्रयास किए गए हैं जो इस सवाल के जवाब में रोशनी डालने का कार्य करते हैं ।
आधुनिक वैज्ञानिक शोध
जहां एक ओर कुछ तथ्यों के साथ बहुत से लोग भगवान राम की सत्यता पर संदेह करते है, वहीं कई शोधकर्ता और वैज्ञानिक अपने-अपने शोधों और प्रमाणों के साथ प्रमाणित करते हैं कि भगवान राम वाकई एक अद्वितीय चमत्कारी पुरुष थे और उन्होंने धरती पर अवतरण किया था।
रामायण की सत्यता
गादर कामिल बुल्के ने अपने शोध के माध्यम से लगभग 300 प्रमाणों का संग्रहण किया, जिनके आधार पर राम के जन्म की सत्यता का प्रमाणित किया जा सकता है। एक अन्य गैर सरकारी संस्था चेन्नई ने भी एक ऐसे शोध का समर्थन किया, जिसके अनुसार राम का जन्म 5,114 ईसापूर्व में हुआ था। इस शोध के अनुसार, राम के जन्म को लगभग 7,123 वर्षों से अधिक का समय हो चुका है।
राम जन्म की सत्यता की जांच
वाल्मीकि रामायण में उल्लिखित राम के जन्म के समय के नक्षत्रों की स्थिति को ‘प्लेनेटेरियम’ नामक सॉफ्टवेयर की सहायता से गणना की गई, और इसके माध्यम से हमें वह स्पष्ट ज्ञान प्राप्त हुआ कि राम का जन्म कब और किस समय हुआ था। प्लेनेटेरियम एक सॉफ्टवेयर है जो आगामी सूर्य और चंद्र ग्रहण की भविष्यवाणियों के साथ-साथ गत लाखों सालों के हालातों का भी विस्तार से वर्णन कर सकता है। इसके माध्यम से हम राम के जन्म की समय-स्थिति को प्रमाणित करने के लिए यह साबित कर सकते हैं कि वे कब धरती पर अवतरण करे थे।
लव-कुश का जन्म
राम के पुत्र, लव-कुश के संबंध में भी अनुसंधान किया गया, और इस अनुसंधान से साबित हुआ कि लव-कुश शल्य वंश के पांचवे पीढ़ी से उत्पन्न हुए थे, जिन्होंने महाभारत के युद्ध में कौरवों की ओर से युद्ध किया था। यदि हम इसे मान्यता देते है, तो लव और कुश का जन्म महाभारत काल के लगभग 2500 से 3000 वर्ष पूर्व हुआ था, अर्थात लगभग 6,500 से 7,000 वर्ष पूर्व आज के समय से।
संस्कृतियां और पौराणिक ग्रंथ
राम जन्म के प्रमाण केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अनेक देशों में लिखी गई पुस्तकों और ग्रंथों में भी पाए जाते हैं। बाली, जावा, सुमात्रा, नेपाल, लाओस, कंबोडिया, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, भूटान, कंपूचिया, मलेशिया, श्रीलंका और थाईलैंड आदि देशों की संस्कृतियों और पौराणिक ग्रंथों में आज भी राम को जीवंत माना जाता है।
पवित्र ग्रंथ रामायण
हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र ग्रंथ रामायण के रचयिता वाल्मीकि ने इस की रचना मान्यता है कि भगवान राम के काल के दौरान की थी। इसलिए इस ग्रंथ को सबसे अधिक प्रामाणिक माना जाता है। वाल्मीकि ने पुराणों में गठित इतिहास को अपने महाकाव्य रामायण में मिथकीय स्वरूप से दर्शाया था। इसमें तथ्यों की क्रमबद्धता की कमी के कारण ही शायद राम के जन्म को लेकर विवाद कायम रहा है।
तुलसीदास कृत रामचरितमानस
इसके बाद, गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना की, जिनका जन्म सन् 1554 ई. में हुआ था। यह सत्य है कि रामचरित मानस ने रामायण से अधिक लोकप्रियता प्राप्त की, लेकिन इस ग्रंथ का भी आधार रामायण के तथ्यों पर ही है।
विविध भाषाओं में रचना
संस्कृत के अलावा, भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अन्य भाषाओं में भी रामायण के विभिन्न संस्करण लिखे गए हैं। तमिल भाषा में ‘कम्बरामायण’, असम में ‘असमी रामायण’, उड़िया में ‘विलंका रामायण’, कन्नड़ में ‘पंप रामायण’, कश्मीर में ‘कश्मीरी रामायण’, बंगाली में ‘रामायण पांचाली’, मराठी में ‘भावार्थ रामायण’ आदि प्राचीनकाल में ही रचे गए थे।
विदेशों में रामायण
भारत के अलावा, विदेशी भाषाओं में भी रामायण की रचना हुई है, जैसे कंपूचिया की ‘रामकेर्ति’ या ‘रिआमकेर रामायण’, लाओस की ‘फ्रलक-फ्रलाम’, मलेशिया की ‘हिकायत सेरीराम’, थाईलैंड की ‘रामकियेन’ और नेपाल में भानुभक्त कृत ‘रामायण’ आदि प्रमुख हैं।
श्रीलंका में रामायण
संस्कृत और पालि साहित्य का प्राचीनकाल से ही श्रीलंका के साथ गहरा संबंध था। वहां के राजा, कुमार दास, रामायण समेत अन्य कई भारतीय महाकाव्यों के आधार पर रची गई ‘जानकी हरण’ के श्रीलंकाई रचनाकार के रूप में माने जाते हैं, और उन्हें कालिदास के घनिष्ठ मित्र की संज्ञा दी जाती है। इसके अलावा, सिंघली भाषा में लिखी गई मलेराज की कथा भी राम के जीवन से ही जुड़ी हुई है।
बर्मा और कंपूचिया में रामायण
शुरुआती दौर में बर्मा को ‘ब्रह्मादेश’ के नाम से जाना जाता था। बर्मा की प्राचीनतम रचना, ‘रामवत्थु’, श्री राम के जीवन से प्रभावित है। इसके अलावा, लाओस में भी रामकथा के आधार पर कई रचनाओं का विकास हुआ, जैसे ‘फ्रलक-फ्रलाम’ (रामजातक), ‘ख्वाय थोरफी’, ‘पोम्मचक’ (ब्रह्म चक्र), और ‘लंका नाई’ आदि प्रमुख हैं।
इंडोनेशिया और जावा की रामायण
प्रारंभिक काल में इंडोनेशिया और मलेशिया में पहले हिन्दू धर्म के लोग ही रहा करते थे लेकिन फिलिपींस के इस्लाम धर्म ग्रहण करने के बाद वहां धार्मिक हिंसा ने जन्म लिया, जिसकी वजह से समस्त देश के लोगों ने इस्लाम को अपना लिया। इसलिए जिस तरह फिलिपींस में रामायण का एक अलग ही स्वरूप विद्यमान है कुछ उसी तरह इंडोनेशिया और जावा की रामायण भी उसी से मिलती-जुलती है।
कावी भाषा में रामायण की रचना
डॉ. जॉन. आर. फ्रुकैसिस्को ने फिलिपींस की मारनव भाषा में रचित एक रामकथा को खोजा, जिसका नाम ‘मसलादिया लाबन’ था। इस रामकथा का आधार भी जावा की प्राचीनतम कृति ‘रामायण काकावीन’ है। ‘रामायण काकावीन’ की रचना जावा की प्राचीनतम कावी भाषा में हुई थी।
रावण का ननिहाल था मलेशिया
13वीं शताब्दी में मलेशिया में इस्लामीकरण हुआ। यहां रामकथा पर आधारित एक विस्तृत ग्रंथ की रचना हुई, जिसका नाम ‘हिकायत सेरिराम’ है। माना जाता है कि मूल रूप से मलेशिया पर रावण के मामा का शासन था।
जंबू द्वीप के सम्राट थे दशरथ
चीनी रामायण को ‘अनामकं जातकम्’ और ‘दशरथ कथानम्’ नाम से भी जाना जाता है। इन दोनों ग्रंथों में रामायण के विभिन्न पात्रों का वर्णन किया गया है। इन चीनी रामायणों के अनुसार, राजा दशरथ अयोध्या के बजाय जंबू द्वीप के सम्राट थे, जिनके पहले पुत्र का नाम लोमो था। चीनी लोक कथाओं के अनुसार, राम का जन्म 7,323 ईसापूर्व में हुआ था।
वानर सेना की प्रतिमाएं
चीन की अपेक्षा मंगोलिया के उत्तर-पश्चिम में बसे लोगों के पास राम के जीवन के विस्तृत जानकारी है। उन लामाओं के घरों या निवास स्थलों से राम की सेना, अर्थात वानरों की कई प्रतिमाएं मिलती हैं। मंगोलिया से राम के जीवन से जुड़ी कई पांडुलिपियां भी प्राप्त हुई हैं।
राम से परिचित हैं तिब्बत के लोग
तिब्बत के लोग रामकथा को ‘किंरस-पुंस-पा’ से जानते हैं। प्राचीनकाल से ही यहां वाल्मीकि रामायण काफी प्रसिद्ध रही है। तिब्बत के ‘तुन-हुआंग’ नामक स्थल से रामायण की छः प्रतियां भी प्राप्त हुई हैं।
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